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नज़्म
इब्न-ए-मरयम भी उठे मूसी-ए-इमराँ भी उठे
राम ओ गौतम भी उठे फ़िरऔन ओ हामाँ भी उठे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो मेहंदी जिस की सुर्ख़ी से कोई सुर्ख़ी न मिलती थी
वो मिस्सी जिस से बू बेली चमेली की निकलती थी