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नज़्म
हर पत्थर उस पावँ से टकराने की ख़्वाहिश में ज़िंदा है
लेकिन ये तो उसी अधूरे-पन का जहाँ है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
बीती यादों ने बिछाए हैं जो कुछ जाल यहाँ
इन से बचना है तुम्हें पावँ न फँसने पाए
आदित्य पंत नाक़िद
नज़्म
इस दरमियान, आँखों के नीचे हम ने अपने हाथ रखे
कि वो पावँ पर न गिर पड़ें और काँच का ए'तिबार जाता रहे
नसरीन अंजुम भट्टी
नज़्म
लिया मथुरा में जनम जा के रहा गोकुल में
पावँ के रखते ही अमृत मिला जमुना-जल में