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नज़्म
रबूद आँ तुर्क शीराज़ी दिल-ए-तबरेज़-ओ-काबुल रा
सबा करती है बू-ए-गुल से अपना हम-सफ़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उठाना हाथ प्यारे वाह-वा टुक देख लें हम भी
तुम्हारी मोतियों की और ज़री के तार की राखी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कुछ उछलीं सुन्नतें नाज़ भरीं कुछ गोदें आईं थिरक थिरक
ये रूप दिखा कर होली के जब मैन रसीले टुक मटके
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
भागी तुम्हारी राय तो जाती नहीं है कुछ
''चलता हूँ मैं भी, टुक तो रहो, मैं नशे में हूँ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
किसी कंजूस के कमरे में जा कर बैठ जाते हैं
और उस के नाम पर टुक शाप से चीज़ें मंगाते हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर