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नज़्म
वक़्त से पहले बुला लेते हैं पीरी को उलूम
उम्र से आगे निकल जाते हैं चेहरे बिल-उमूम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सुनो! ये तुम्हारे बदन का ख़ुमार-आश्ना कैफ़... नर्म ओ मुसलसल
मुझे लज़्ज़तों के उमुक़ में लिए जा रहा है
अज़हर ग़ौरी नदवी
नज़्म
बढ़ रहा है सूरत-ए-सैलाब लोगों का हुजूम
हर दुकाँ पर गाहकों का शोर-ओ-ग़ुल है बिल-उमूम
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
अपने उमूर में न करो ग़ैर को शरीक
शर को न ढूँढो और करो ख़ैर को शरीक