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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
या तू आज हमें अपना ले, या तू आज हमारा बन
देख कि वक़्त गुज़रता जाए कौन अबद तक जीता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मैं ने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी ख़ुदी को तुम ने चंद चमतकारों से मारना चाहा
गुलज़ार
नज़्म
औरों के लिए तो जीना ही ख़ुद अपने लिए भी जीना है
जीने की हर तरह से तमन्ना हसीन है