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नज़्म
ज़मीनें हों वडेरों की मशीनें हों लुटेरों की
ख़ुदा ने लिख के दी है ये तुम्हें तहरीर मौलाना
हबीब जालिब
नज़्म
तू ने चाहा था जला दूँ मैं तिरी तस्वीरें
सोच लीं मैं ने मगर और ही कुछ तदबीरें
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
मुझे सोच कर, या खरोच कर, मेरी याद को न आवाज़ दो,
मुझे ख़त में लिख के ख़ुदाओं का न दो वास्ता