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नज़्म
वो है ताबीर का अफ़्लास जो ठहरा है फ़न मेरा
सुख़न यानी लबों का फ़न सुख़न-वर यानी इक पुर-फ़न
जौन एलिया
नज़्म
क्या सख़्त मकाँ बनवाता है ख़म तेरे तन का है पोला
तू ऊँचे कोट उठाता है वाँ गोर गढ़े ने मुँह खोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुश्किल हुई है वाँ से हर इक को राह चलनी
फिसला जो पाँव पगड़ी मुश्किल है फिर संभलनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
याँ अहल-ए-जुनूँ यक-ब-दिगर दस्त-ओ-गिरेबाँ
वाँ जैश-ए-हवस तेग़-ब-कफ़ दरपा-ए-जाँ है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साथ इक दोस्त के इक दिन जो मैं गुलशन में गया
वाँ के सर्व-ओ-सुमन-ओ-लाला-ओ-गुल को देखा