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नज़्म
बयाबान-ए-मोहब्बत दश्त-ए-ग़ुर्बत भी वतन भी है
ये वीराना क़फ़स भी आशियाना भी चमन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उसे ख़ुद अपने हाथों से कफ़न दे कर फ़रेबों का
इसी की आरज़ूओं की लहद में फेंक आया हूँ