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नज़्म
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ये चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो उन को चहचहाने दो
परिंदों को दरख़्तों पर ख़ुशी के गीत गाने दो
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
वो नग़्मे वो मनाज़िर वो बहारें याद हैं मुझ को
यही वो नक़्श हैं जो मिट नहीं सकते मिटाने से