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नज़्म
जल चुकी शाख़-ए-नशेमन थम चुकी बाद-ए-सुमूम
अब हवा-ए-नौ-बहाराँ कौसर-अफ़्शाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
सिमटते फैलते पैहम सुलगते और धुँदलाते
उफ़ुक़ जब पै-ब-पै उभरें उफ़ुक़ जब पय ब पय डूबें
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
सिमटते फैलते पैहम सुलगते और धुँदलाते
उफ़ुक़ जब पै-ब-पै उभरें उफ़ुक़ जब पै-ब-पै डूबें
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
तुम्हारे लम्स की ख़ुशबू ने संदल कर दिया है
कि मैं पागल थी तुम ने और पागल कर दिया है