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नज़्म
न तूफ़ाँ रोक सकते हैं न आँधी रोक सकती है
मगर फिर भी मैं उस क़स्र-ए-हसीं तक जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जब मेरा जी चाहे मैं जादू के खेल दिखा सकता हूँ
आँधी बन कर चल सकता हूँ बादल बन कर छा सकता हूँ
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
बड़ी पुर-ज़ोर आँधी है बड़ी काफ़िर बलाएँ हैं
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक जुनूँ-अंगेज़ लय में जाने क्या गाते हुए
सर-कशी की तुंद आँधी दम-ब-दम चढ़ती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
या ख़्वाब-ए-परेशाँ दुनिया का बाला-ए-फ़ज़ा मंडलाता है
चलती है ज़माने में आँधी शाएर के तुंद ख़यालों की
जमील मज़हरी
नज़्म
जम्अ' हुए हैं चौराहों पर आ के भूके और गदागर
एक लपकती आँधी बन कर एक भबकता शो'ला हो कर