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नज़्म
दूसरे दोहरे के रस्ते में तीसरा खेल का मुहरा है
तीसरा तिहरा जो है उस का सब से उजागर चेहरा है
मीराजी
नज़्म
किस की याद चमक उट्ठी है धुँदले ख़ाके हुए उजागर
यूँही चंद पुरानी क़ब्रें खोद रहा हूँ तन्हा बैठा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हुए वा शुऊ'र-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त के दर तुम्हारी वज्ह से
उजागर हुआ मुझ में एहसास-ए-हस्ती तुम्हारी वज्ह से