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नज़्म
जिन के लहू के तुफ़ैल आज भी हैं उंदुलुसी
ख़ुश-दिल ओ गर्म-इख़्तिलात सादा ओ रौशन-जबीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहते हैं अहल-ए-क़िमार आप में गर्म इख़्तिलात
हम तो डब में सौ रुपे रखते हैं तुम रखते हो कै
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फिर इत्तिसाल-ए-गर्दन-ओ-ख़ंजर है क्या कहूँ
फिर इख़्तिलात-ए-ज़ख़्म-ओ-नमक-दाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रात आई जाग उठा इंसाँ का ज़ौक़-ए-बे-बिसात
आख़िरी इस का ठिकाना मर्द ओ ज़न का इख़्तिलात