aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ख़्वाब-ए-इशरत में हैं अरबाब-ए-ख़िरदऔर इक शाइर-ए-बेदार हूँ मैं
क्या बताएँगे ये अरबाब-ए-ख़िरद अब मुझ कोग़ैर सुग्रीव श्री-राम का क्या यार न था
जिस से टकरा के गिरे थे कभी अरबाब-ए-ख़िरदआओ नज़दीक से वो संग-ए-गिराँ देख आएँ
کہتا تھا عزازيل خداوند جہاں سے پرکالہء آتش ہوئي آدم کي کف خاک!
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आयाखा खा के पान ज़ालिम कर होंठ लाल आया
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब नक़्श-गर-ए-हादसातसिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब अस्ल-ए-हयात-ओ-ममात
وہ صاحب 'تحفہ العراقين، ارباب نظر کا قرہ العين
हमबहुत छोटे हैं
तुम्हारा एहसाससफ़ेद रेशम से
एक उदास नज़्ममुझ से कफ़न माँगती है
मेरा सारा असबाब-ए-सफ़र ख़रीद लिया है
सुब्ह से शाम तकलकड़ियाँ चीरना
तुझ से मिलता हूँ तो अहबाब सितम ढाते हैंउन की ख़्वाहिश है कि मिलने से भी मजबूर रहूँ
आज किस आलम में हैं अहबाब मेरेआँख में ताब-ओ-तब ओ नम कुछ नहीं
उस का चेहरा, उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहींइक शबिस्ताँ याद है
तुम्हारी जानिब दुआ के मोती रवाना करतेदिखा ये सकते
आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल परदेखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए
रब्त-ए-बाहम के न अस्बाब फ़राहम होंगेमुतमइन ख़ुद से कहीं तुम न कहीं हम होंगे
चंद खोए हुए लम्हात को करता हूँ तलाशऔर वो मिलते नहीं आलम-ए-बेदारी में
लाख पर्दों में रहूँ भेद मिरे खोलती हैशाइ'री सच बोलती है
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