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नज़्म
ख़ुदा के नथनों से बहती वहशत का इर्तिकाज़
और मिर्रीख़ी बाशिंदे की चीख़ हम पर टूट पड़ेगी
हसन अल्वी
नज़्म
जोश में बढ़ते हैं जो अक़्ल-ओ-ख़िरद से बे-नियाज़
कर नहीं पाते वो अपनी क़ुव्वतों का इर्तिकाज़
सलमान ग़ाज़ी
नज़्म
नील के साहिल से ले कर ता-ब-ख़ाक-ए-काश्ग़र
जो करेगा इम्तियाज़-ए-रंग-ओ-ख़ूँ मिट जाएगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो तू समझे तो आज़ादी है पोशीदा मोहब्बत में
ग़ुलामी है असीर-ए-इम्तियाज़-ए-मा-ओ-तू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
واں بھي انساں اپني اصليت سے بيگانے ہيں کيا؟
امتياز ملت و آئيں کے ديوانے ہيں کيا؟