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नज़्म
हैरती हूँ मैं तिरी तस्वीर के ए'जाज़ का
रुख़ बदल डाला है जिस ने वक़्त की परवाज़ का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नुत्क़ को सौ नाज़ हैं तेरे लब-ए-एजाज़ पर
महव-ए-हैरत है सुरय्या रिफ़अत-ए-परवाज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
में क़सम खाता हूँ अपने नुत्क़ के ए'जाज़ की
तुम को बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तूल दे कर तिरी ज़ुल्फ़ों को शब-ए-ग़म की तरह
फ़न के ए'जाज़ से नागिन सी बना देंगे तुझे
हबीब जालिब
नज़्म
न हूँ शाइ'र न वली हूँ न हूँ एजाज़-ए-बयाँ
बज़्म-ए-क़ुदरत में हूँ तस्वीर की सूरत हैराँ