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नज़्म
गुलज़ार-ए-मआ'नी की चहकती हुई बुलबुल
शाइ'र थी सुख़न-संज थी एजाज़-ए-बयाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असद मोहम्मद ख़ाँ
नज़्म
हैं जसोधा के लिए ज़ीनत-ए-आग़ोश कहीं
गोपियों के भी तसव्वुर से हैं रू-पोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
राह देखी नहीं और दूर है मंज़िल मेरी
कोई साक़ी नहीं मैं हूँ मिरी तन्हाई है