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नज़्म
इम्तिहान-ए-दीदा-ए-ज़ाहिर में कोहिस्ताँ है तू
पासबाँ अपना है तू दीवार-ए-हिन्दुस्ताँ है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें
और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इम्तिहाँ सर पर है लड़के लड़कियाँ हैं और किताब
डेट-शीट आई तो गोया आ गया यौम-उल-हिसाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नोशी गिलानी
नज़्म
अख़बार मैं ने देखा तो मुझ पर हुआ अयाँ
होते हैं पास वो भी न दें जो कि इम्तिहाँ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
दिल में है इम्तिहान का ग़म किस तरह भुलाऊँ
हो हो के बे-क़रार लगाता हूँ क़हक़हे