aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "انتساب"
आज के नामऔर
हमारी चाहतों की बुज़-दिली थीवर्ना क्या होता
कि जैसे अबद तकमिरी एक इक पोर का इंतिसाब
जो ख़िलअत-ए-इंतिसाब पहना के वक़्त की रौ से खेलता हैकोई तो होगा
शिकायत न करनाअगर ये ज़माना पुकारे तुम्हें
ख़लिश है जो भी तुम्हारे दिल मेंमिरे लिए इंतिसाब रखना
लाई हैं सय्याल नगीनेसर्द घनेरी पलकें
गर इंतिसाब हो इस काकहाँ से आएगा इल्ज़ाम कोई फ़ितरत पर
उस के नामजिस ने दुनियाओं में ख़ैर-ओ-शर में तवाज़ुन रखा
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहरवो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
मेरी चाल के इंतिज़ार में हैमगर मैं कब से
दिल में नाकाम हसरतें ले करहम तिरा इंतिज़ार करते हैं
मैं कोई राह हूँ तुम राह देखने वालेकि मुंतज़िर तो मरा पर न इंतिज़ार मरा
तेरे ज़ेहन की क़समख़ूब इंतिख़ाब है
वो दिल कि तेरे लिए बे-क़रार अब भी हैवो आँख जिस को तिरा इंतिज़ार अब भी है
किस को अब होगा वतन में आह मेरा इंतिज़ारकौन मेरा ख़त न आने से रहेगा बे-क़रार
न पूछ 'इक़बाल' का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस कीकहीं सर-ए-राहगुज़ार बैठा सितम-कश-ए-इंतिज़ार होगा
रात भर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहेसाँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ तुम नहीं आतींरियाज़-ए-ज़ीस्त है आज़ुरदा-ए-बहार अभी
जब आँसुओं को मयस्सर हज़ार शाने थेजब इंतिज़ार न करने के सौ बहाने थे
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