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नज़्म
ज़ीस्त एहसास भी है शौक़ भी है दर्द भी है
सिर्फ़ अन्फ़ास की तरतीब का अफ़्साना नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बर्फ़-ज़ारों को तिरे अन्फ़ास ने गरमा दिया
तेरे इस्तिग़्ना ने तख़्त-ए-सल्तनत ठुकरा दिया
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
यहाँ है रिश्ता-ए-अन्फ़ास में तरन्नुम-ए-दोस्त
यहाँ लताफ़त-ए-एहसास से ज़ियाँ है न सूद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रूह मुतलक़ जज़्ब थी गोया तिरे एहसास में
क़ुद्स के नग़्मे निहाँ थे पर्दा-ए-अन्फ़ास में
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
कि नहीं है मिरे अन्फ़ास में बू-ए-मय-ए-जाम
चमन-ए-दहर की तक़दीर कि मैं हूँ वो घटा