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नज़्म
क्या बुग़चे ताश मोशज्जर के क्या तख़्ते शाल दोशालों के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
क्या बाग़ियों की आतिश-ए-दिल सर्द हो गई
क्या सरकशों का जज़्बा-ए-पिनहां चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
चौक चौक पर गली गली में सुर्ख़ फरेरे लहराते हैं
मज़लूमों के बाग़ी लश्कर सैल-सिफ़त उमडे आते हैं