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नज़्म
दोस्त जो बिछड़े हुए इक दिन अचानक मिल गए
दिल तो ग़मगीं थे मगर चेहरे ख़ुशी से खिल गए
इक़बाल फ़िरदौसी
नज़्म
बुझ गया रौशन सवेरा माँ तिरे जाने के बा'द
छा गया हर सू अंधेरा माँ तिरे जाने के बा'द
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
लिखाने नाम सच्चे आशिक़ों में जब भी हम निकले
इरादों में हमारे जाने कितने पेच-ओ-ख़म निकले
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
अलीगढ़ है यहाँ ऐ दोस्त क्या पाया नहीं जाता
यहाँ वो कौन सा शो है जो दिखलाया नहीं जाता
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
पहले ज़माना और था मय और थी दौर और था
वो बोलियाँ ही और थीं वो टोलियाँ ही और थीं, वो होलियाँ ही और थीं