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नज़्म
तुम्हारे बा'द मेरा ग़म नज़र को गढ़ गया यानी
मिरी आँखों पे काला रंग कोई चढ़ गया यानी
प्रशान्त मिश्रा मन
नज़्म
जब चाँदनी खुलती है हर-सू हर ज़र्रा ताबाँ होता है
जब छूट से माह-ओ-अंजुम की दरिया में चराग़ाँ होता है
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है