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नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तिरे आग़ोश में बचपन के हम ने दिन बिताए हैं
तिरे आँगन में कितना रोए कितना मुस्कुराए हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
उन के मफ़्हूम जो भी बताए गए
ख़ाक पर बसने वाले बशर को मसर्रत के जितने भी नग़्मे सुनाए गए
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
पाप के इस मंदिर में क्या क्या भाव बताए राम-जनी
शाम ढले जब आन बिराजें सोने के भगवान यहाँ