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नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
सुब्ह ग़र्क़-ए-बहस हो ग़ुंचे खिलाने के एवज़
दर्स दें मौजें सबा की गुनगुनाने की एवज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कपड़े की ज़रूरत ही क्या है मज़दूरों को, हैवानों को
क्या बहस है, सर्दी गर्मी से लोहे के बने इंसानों को
जमील मज़हरी
नज़्म
يہ علم و حکمت کي مہرہ بازي ، يہ بحث و تکرار کي نمائش
نہيں ہے دنيا کو اب گوارا پرانے افکار کي نمائش
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिन-भर कॉफ़ी-हाउस में बैठे कुछ दुबले-पतले नक़्क़ाद
बहस यही करते रहते हैं सुस्त अदब की है रफ़्तार
हबीब जालिब
नज़्म
पर बहस करने और मंसूबे बनाने की खुली आज़ादी दी
यारो! चलो सड़कों पे नंगे सैर करने जाएँ
अब्बास अतहर
नज़्म
मग़रिब-ओ-मशरिक़ की सारी बहस में तुम ना-उमीदी के सिवा क्या दे सके
ना-उमीदी कुफ़्र है