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नज़्म
उस की बरकत से जहाँ में फैलती हैं नेकियाँ
क्यों न फिर उस्ताद से राज़ी हो रब उस्ताद का
फ़ैज़ लुधियानवी
नज़्म
ये जन्नत जो मिली है सब उन्हीं क़दमों की बरकत है
हमारे वास्ते रखना तुम्हारा इक सआदत है''
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
पहुँची है सर-ए-हरफ़-ए-दुआ अब मिरी तहरीर
हर काम में बरकत हो हर इक क़ौल में क़ुव्वत
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये सब बंजारों के ही खुरदुरे हाथों की बरकत थी
कि ख़ार-ओ-ख़स को भी छू लें तो वो उस को चमन कर दें
इशरत आफ़रीं
नज़्म
ज़ेब-ओ-ज़ीनत में तू ऐ जान-ए-जहाँ मशहूर है
ख़ैर ओ बरकत से तू ऐ हिन्दोस्ताँ मामूर है