aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بلال"
नाले बुलबुल के सुनूँ और हमा-तन गोश रहूँहम-नवा मैं भी कोई गुल हूँ कि ख़ामोश रहूँ
چمک اٹھا جو ستارہ ترے مقدر کا حبش سے تجھ کو اٹھا کر حجاز ميں لايا
ليکن بلال، وہ حبشي زادئہ حقير فطرت تھي جس کي نور نبوت سے مستنير
जब दिसम्बर में धुँद उतरती हैअपने असरार में लिपटती हुई, तह-ब-तह हम पे फ़ाश होती हुई
मुझे अपनी मौत से बहुत मोहब्बत हैमौत ज़िंदगी का सब से बड़ा सच है
इब्तिदा से कभी नज़्म होती नहींऔर कभी इब्तिदा से भी पहले कहीं
मैं अपनी शाइ'रीइक डायरी में नोट करता था
तिरी मख़मूर सी मुस्कान अभी देखी तो याद आयामिरी मुस्कान पर इक दिन मुझे माँ ने बताया था कि छोटा था तो अक्सर नींद में मैं मुस्कुराता था
मेरी एक बुरी आदत थीतू मेरी आदत के हाथों कैसी ज़िच और कितनी दिक़ थी
ख़ुदा को याद करता हूँ तो माँ की याद आती हैअभी अज़लों से गर्दां चाक की मिट्टी का नम आँखों में रौशन था कि मैं ने माँ को देखा था
तुम्हारी दीद की ख़्वाहिश लिएजब भी तुम्हारी झील आँखों तक पहुँचती हैं
जब वो ग़ुस्से में होती है तोकुछ भी कह जाती है
तू मुझे गोद में ले के यारों अज़ीज़ों में बाज़ार-ओ-दफ़्तर को जातामुझे याद है ये
पुरानी क़ब्रें अधूरे चेहरे उगल रही थींअधूरे चेहरे पुरानी क़ब्रों की सर्द-ज़ा भुरभुरी उदासी जो अपने ऊपर गिरा रहे थे
वो दिन कितने मुनव्वर थेकिसी को बाज़ुओं में बे-तरह भरने की ख़्वाहिश से
बिलाल 'असवद'कौन सा साज़ है
उफ़ुक़ की सुर्ख़ियों से इक कहानी याद आती हैकहानी वो
कोई शीशा चटख़्ता हैकिसी बिल्लोर की तड़ख़न मिरे कानों तक आती है
कई रंग थे जो उतर गएकई लोग थे जो बिछड़ गए
मैं रोज़-ए-अव्वल की इक कहानीतुम्हें सुनाऊँ तो रो पड़ोगे
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