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नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बिजली के खम्बों पर बल्ब जले भी हों तो क्या हासिल
लफ़्ज़ों से आँखों के रिश्ते टूट चुके
शकील आज़मी
नज़्म
ख़ुतूत लिखे गए जो कभी पोस्ट नहीं हुए
कुछ बल्ब जिन को रौशन करके आप अपनी ख़ुद-कुशी