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नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दुश्नाम और बलवों के और दू-ब-दू के बीच
जैसे कि कोई बैठा हो बज़्म-ए-अदू के बीच
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नमी के बुलबुलों को इस की पलकों पर लरज़ते झिलमिलाते
देखता हूँ उँगलियों से छू भी सकता हूँ
वज़ीर आग़ा
नज़्म
या इलाही हश्र तक महकें मिरे गुलशन के फूल
बुलबुलों का शाख़-ए-गुल पर आशियाँ क़ाएम रहे
कौसर सिद्दीक़ी
नज़्म
ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत
थे ख़ार-ज़ार जिस जा है बुलबुलों का मस्कन