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नज़्म
ये मई की पहली, दिन है बंदा-ए-मज़दूर का
मुद्दतों के ब'अद देखा इस ने जल्वा हूर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सुनो गर सुन सको तुम दास्तान-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
रुला देगी मगर आँसू लहू के दास्ताँ मेरी
सय्यद अली हुसैन शाह अली
नज़्म
तमतमाए हुए आरिज़ पे ये अश्कों की क़तार
मुझ से इस दर्जा ख़फ़ा आप से इतनी बेज़ार
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ऐ बादल के प्यारे टुकड़ो गरजो न यहाँ बरसो न यहाँ
बिखराओ न तुम इस वादी में ये सच्चे मोती की लड़ियाँ
सलाम संदेलवी
नज़्म
पूछता है तो कि कब और किस तरह आती हूँ मैं
गोद में नाकामियों के परवरिश पाती हूँ मैं