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नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
बिछड़ना जब हुआ होगा वो बरसी होंगी सच-मुच में
मैं दिख जाऊँ कहीं इक बार तरसी होंगी सच-मुच में
प्रशान्त मिश्रा मन
नज़्म
पीयूष शर्मा
नज़्म
फ़ज़ा की गोद में दम तोड़ती क़ौस-ए-क़ुज़ह क्यूँ है
बिछड़ना याद रखना भूल जाना किस को कहते हैं
शाहिद मलिक
नज़्म
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें