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नज़्म
मगर ऐ काश देखें वो मिरी पुर-सोज़ रातों को
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़ कर आँसू बहाता हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कमाँ को खींचता हूँ बान अर्जुन का चलाता हूँ
ग़रज़ यूँ दुश्मनों के ख़ून की नद्दी बहाता हूँ
वफ़ा बराही
नज़्म
मुर्तइश मुर्तइश अपनी फैली रगों की फ़रावानियों में
बहाता हूँ मैं नग़्मा-ज़न कश्तियों के चराग़
रियाज़ लतीफ़
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सुख़न बहता चला आता है बे-बाइस के होंटों से
वो कुछ कहता चला आता है बे-बाइस के होंटों से
जौन एलिया
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ