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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ख़रोश-आमोज़ बुलबुल हो गिरह ग़ुंचे की वा कर दे
कि तू इस गुल्सिताँ के वास्ते बाद-ए-बहारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बाग़्बान-ए-चारा-फ़र्मा से ये कहती है बहार
ज़ख़्म-ए-गुल के वास्ते तदबीर-ए-मरहम कब तलक