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नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
की बीनाई का मसरफ़ था... वो लब दो चार दिन पहले
मिरे माथे पे हो कर सब्त जो कहते थे'' तुम जाओ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
दुख में हिलते हुए लब की मैं दुआ बन जाऊँ
उफ़ वो आँखें कि हैं बीनाई से महरूम कहीं