aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بے_پروائی"
बे-परवाई से बेचारेधागों को लिपटाने वाली
तारीख़ के आसेबी छकड़े कोबेपरवाई और अनाड़ी-पन से खींचते हैं
कि ख़ुद शाख़ों ने बेपरवाई से दामन छुड़ाया हैज़मीं ने भी निगाहें फेर ली हैं
देखो तुम गिनती नंबरों के हिसाबकिताब में मत जाओ
मैं सरापा इश्क़ मेरी जाँ के दरपय है सभी कुछमेरे अंदर और बाहर असलहों की गर्म-बाज़ारी है हर सू
हर एक जज़्बा है मुज़्तरिब क्योंन प्यार करने को चाहता दिल
क्यों शाम का आँचल मैला हैहर सम्त धुआँ सा फैला है
फ़ितरत-ए-मुज़्तरिबमेरा शौक़-ए-फ़ुज़ूल
ग़म का आहंग हैइस शाम की तंहाई में
उस रौशन सुब्ह के दामन मेंइक सूरज क़हर का चमका था
वो तीर हो सागर की रुत छाई हो फागुन कीफूलों से महकती हो पुर्वाई घने बन की
خاموشي افلاک تو ہے قبر ميں ليکن بے قيدي و پہنائي افلاک نہيں ہے
عشق طينت ميں فرومايہ نہيں مثل ہوس پر شہباز سے ممکن نہيں پرواز مگس
ہماں فقيہ ازل گفت جرہ شاہيں را بآسماں گروي با زميں نہ پروازي
पलकों पर सपनों की किरची बची रह गईबस इतनी सी ला-परवाही क्या होनी थी
किसी के दूर जाने सेतअ'ल्लुक़ टूट जाने से
शहर-ए-दिल की गलियों मेंशाम से भटकते हैं
ज़रा बरामदे में और रह लूँफ़ुसूँ में शाम के प्रवासी बह लूँ
छे हज़ार बरसों से अहल-ए-दीन-ओ-दानिश नेबार बार कोशिश की बार बार कोशिश की
वो क्या थाक़हक़हा था
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