aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بے_کل"
ऐ दिलऐ बे-कल फ़व्वारे
सन सन करताबे-कल नग़्मा
ساتھ اے سيارہء ثابت نما لے چل مجھے خار حسرت کي خلش رکھتي ہے اب بے کل مجھے
बे-कल बे-कल रोती रहतीरज़िया भल-भल रोती रहती
किनारों के पहलू मेंबे-कल दुखी
ज़ख़्मी तन हैमन बे-कल है
हाँ बे-कल बे-कल रहता है हो पीत में जिस ने जी हारापर शाम से ले कर सुब्ह तलक यूँ कौन फिरेगा आवारा
तेरे ये बेताब आँसूमुझ को कर देते हैं बेकल
हमारे यहाँ बच्चे कोजो अभी पूरी तरह खड़ा होना भी न सीखा हो
आज बे-कल है बहुतख़ून-ए-ताज़ा के लिए
शाख़ में उस को उलझाता हैभाई बन कर इतराता है
उन हाथों की ''बे-कल चाँदीकिस काम आई किस हाथ लगी''
आशा बोली तुम हो पागलनाहक़ ही होती हो बे-कल
जब बहुत ही बे-कल होता थाअशआर भी लिक्खा करता था
एक अनोखे राज़ से बे-कलधरती में कुछ ढूँड रहे हैं
मगर हैं भूक से बे-कलमछेरे सुब्ह की धुंदली रिदाओं में
ख़ाली सपनों से न औक़ात बनेगी अपनीये शब-ए-माह भी कट जाएगी बे-कल बे-कल
और ख़ूँ रुलाता है मुझेबे-कल बनाता है मुझे
अपने तल में जल-पौदा बन कर जड़ लेने देसदा जिए
वो भी बस काकई घंटों लम्बा
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