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नज़्म
सुकूत-आमोज़ तूल-ए-दास्तान-ए-दर्द है वर्ना
ज़बाँ भी है हमारे मुँह में और ताब-ए-सुख़न भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मुल्क में जब इंक़लाब ताज़ा ला सकते नहीं
बिजलियाँ जब ख़िर्मन-ए-दिल पर गिरा सकते नहीं
सरीर काबिरी
नज़्म
हर जल्वा जहाँगीर था जिस वक़्त जवाँ थी
कहते हैं जिसे नूर-जहाँ नूर-ए-जहाँ थी