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नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किस हाथ को छोड़ना है किसे थामना है
इक रियाज़ी के उस्ताद ने अपने हाथों में परकार ले कर
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
मिरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये नग़्मा-ए-हयात है कि है अजल तराना-संज
ये दौर-ए-काएनात है कि रक़्स में है अहरमन