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नज़्म
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
اب تلک شاہد ہے جس پر کوہ فاراں کا سکوت
اے تغافل پيشہ! تجھ کو ياد وہ پيماں بھي ہے ؟
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब नहीं तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल का मिरे इश्क़ को ग़म
शौक़ से मेरी तमन्नाओं की बर्बादी हो
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
दफ़ बजते हैं सब हँसते हैं और धूम है बिल्कुल
होली की ख़ुशी में तो न कर हम से तग़ाफ़ुल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो 'इक़बाल' जो अज़्मत-ए-आदमिय्यत का पैग़ाम्बर है
लहू के जुमूद और दिल के तग़ाफ़ुल का जो नौहागर है
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
कौन पढ़ पाएगा तहरीर-ए-जबीन-ए-शफ़्फ़ाफ़
कस को मल सकता है बे-वज्ह तग़ाफ़ुल का जवाज़