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नज़्म
तग़ज़्ज़ुल को तिरी रंगीं नवाएँ याद हैं अब तक
तिरे नग़्मों से दिल की बस्तियाँ आबाद हैं अब तक
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मैं अपने क़ल्ब में जब नूर-ए-इरफ़ाँ देख लेता हूँ
तो हर ज़र्रा में इक ख़ुर्शीद-ए-ताबाँ देख लेता हूँ
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
तुम तो ख़ुद ही हो ग़ज़ल जिस पे तग़ज़्ज़ुल है निसार
और उसे पढ़ना जो चाहूँ तो न इस का इत्माम