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नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सड़क जो आती है छावनी से चहल-पहल उस पे ख़ूब ही है
निकल के गुंजान बस्तियों से बरा-ए-तफ़रीह सब हैं आए
नुशूर वाहिदी
नज़्म
उस्ताद पढ़ेंगे दर्जों में हम लोग ख़ुशी से घूमेंगे
इस्कूल न जा कर बाग़ों में तफ़रीह करेंगे बे-मतलब
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
तफ़रीह के सारे कामों में जब रोड़े सब अटकाते थे
जब खेल का नाम आ जाता था बल तेवरी पर पड़ जाते थे