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नज़्म
समुंदरों में उंडेल जितनी शराब चाहे
न हर्फ़ पानी पे आएगा और न उस की तक़्दीस ख़त्म होगी
तारिक़ क़मर
नज़्म
उन की ज़बाँ पे मेरी जितनी कहानियाँ हैं
क्या जानें ये कि दिल की सब मेहरबानियाँ हैं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मैं अपने नीलो नील बदन से प्यार करती हूँ
मगर मुझे मक्खी जितनी आज़ादी भी तुम कहाँ दे सकोगे
किश्वर नाहीद
नज़्म
कि उतनी ही प्यारी हैं माज़ी की तारीकियाँ
जितनी प्यारी है मुस्तक़बिल-ए-ना-रसा की चमक