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नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जाती है उन की क़ब्र पे जिस-दम मिरी निगाह
रोता हूँ जब तो मैं यही कह कह के दिल में आह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
सर से पा तक जब उसी ख़ूँ में नहा जाते हैं
ख़्वाब-ए-नादीदा थके पाँव से लौट आते हैं
रफ़ीआ शबनम आबिदी
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं