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नज़्म
बहुत दिनों तक इस दुनिया में रीत रही है जंगों की
लड़ी हैं धन वालों की ख़ातिर फ़ौजें भूके नंगों की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपने आप से गुत्थम-गुत्था होने में ही सब जंगों की लज़्ज़त है
लज़्ज़त, जिस का शायद कुछ भी ख़र्च नहीं है
सरमद सहबाई
नज़्म
मुझे उन लोगों से तवील जंगों में ज़ाएअ' किया
जिन्हें चंद लफ़्ज़ों से शिकस्त की जा सकती थी
तनवीर अंजुम
नज़्म
वही तो हैं जिन्हों ने मुझ को पैहम रंग थुकवाया
वो किस रग का लहू है जो मियाँ मैं ने नहीं थूका
जौन एलिया
नज़्म
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था