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नज़्म
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जहाँ में अहल-ए-ईमाँ सूरत-ए-ख़ुर्शीद जीते हैं
इधर डूबे उधर निकले उधर डूबे इधर निकले