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नज़्म
नज़ीर बनारसी
नज़्म
अब कहाँ जमुना तिरी मौजों की मस्ताना वो चाल
अब कहाँ पानी के झरने और वो लुत्फ़-ए-बर्शगाल
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मैं ख़ुद में मुस्कुराता और फिर मौज़ूअ' बदल देता
लबों से उस के इक झरने की क़ुलक़ुल जारी होती थी
क़मर जहाँ नसीर
नज़्म
कहीं झरने कहीं मेंडक कहीं चिड़ियाँ कहीं मोर
ज़िंदगी रक़्स करे रंग बहारों के खिलें