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नज़्म
ये लड़का पूछता है अख़्तर-उल-ईमान तुम ही हो
ये लड़का पूछता है जब तो मैं झल्ला के कहता हूँ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हमारी तरह शायद मास्टर साहब भी हैं भूके
अभी झल्ला के दो लड़कों को वो भी मार बैठे हैं
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
क्या जगमग जगमग करती हैं क़िंदीलें इन मह-पारों की
क्या जोत झला-झल होती है इन सुंदर रूप सितारों की
ख़्वाजा दिल मोहम्मद
नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अगर ख़ल्वत में तू ने सर उठाया भी तो क्या हासिल
भरी महफ़िल में आ कर सर झुका लेती तो अच्छा था