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नज़्म
ख़ुदा करे तुम्हारी शाख़ों से एक झोंपड़ी बनाई जाए
बाज़ुओं के घेरे में न आने वाले तुम्हारे
सरवत हुसैन
नज़्म
ग़ार से झोंपड़ी झोंपड़ी से क़बीलों की सूरत बटे
और क़बीलों से शहरों में ढलने लगे हैं
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
घर नहीं झोंपड़ी नहीं कुटिया नहीं मकाँ नहीं
बैठे हैं जंगलों में हम कोई हमें भगाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
फ़र्क़ कभी ख़त्म नहीं होगा महल और झोंपड़ी का
अगर वो कहें तो ग़ज़ब तक़रीर मैं कहूँ तो जुर्म
माधव अवाना
नज़्म
बजाए आग की लपक के सर्द राख उड़ रही है धूँकनी के मुँह से
राख जिस को फाँकती है झोंपड़ी की ख़स्तगी
अली अकबर नातिक़
नज़्म
लकड़ियाँ चुन चुन के लाती हैं सरों पर बूढ़ियाँ
झोंपड़ी से तब कहीं उठता है हल्का सा धुआँ
शातिर हकीमी
नज़्म
न कोई नंद उन्हें अपनी झोंपड़ी में पनाह दे
जो श्याम लाडले कल थे वो आज सब पे हैं भारी