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नज़्म
झड़ी बरसात की जब आग तन मन में लगाती हो
गुलों को बुलबुल-ए-नाशाद हाल-ए-दिल सुनाती हो
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
आँसुओं की वो झड़ी वो ग़म का सामाँ क्या हुआ
तेरा सावन का महीना चश्म-ए-गिर्यां क्या हुआ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तारे निगलती बदलियाँ चारों तरफ़ छाने लगीं
छम-छम फुवारों की झड़ी धरती पे बरसाने लगीं
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
आँखों से लगे सावन की झड़ी और दिल की लगी कुछ और बढ़े
जब सीने से लग कर भी उन के रूदाद-ए-जुदाई कह न सकें