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नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ
और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
जहाँ-ज़ाद नौ साल का दौर यूँ मुझ पे गुज़रा
कि जैसे किसी शहर-ए-मदफ़ून पर वक़्त गुज़रे
नून मीम राशिद
नज़्म
है अगर अर्ज़ां तो ये समझो अजल कुछ भी नहीं
जिस तरह सोने से जीने में ख़लल कुछ भी नहीं